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Share - मानवता के डगर पे

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Shivraj Anand

FreeWriting

मानवता के डगर पे

प्यारे  तुम मुझे भी अपना लो । गुमराह हूं  कोई राह बता दो। युं ना छोडो एकाकी अभिमन्यु सा रण पे। मुझे भी साथले चलो मानवताकी डगर पे।। वहां बडे सतवादी है। सत्य -अहिंसाकेपुजारी हैं।। वे रावण के  अत्याचार को  मिटा देते हैं। हो गर हाहाकार तो सिमटा देते है।। इस पथ मे कोई जंजीर नही जो बांधकर जकड सके। पथ मे कोई विध्न नही जो रोककर अ क ड सके।। है ऐ मानवता की डगर निराली। जीत ले जो प्रेम वही खिलाडी।। यहां मजहब न भेदभाव,सर्व धर्म समभाव से जिया ...है। वक्त आए तो हस के जहर पीया करते है।। फिर तो स्वर्ग यहीं है नर

मानवता के डगर पे
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