मोदी जी का विरोधी नहीं लेकिन हम इस सच्चाई को एक सिरे से नकार भी तो नही सकते कि भारत की ग्रामीण ६०% से ज्यादा गरीब, अशिक्षित,कुपोषित, असुरक्षित और बेरोजगार जनता पर नोटबन्दी कर उससे कैशलेश की बात करना क्या एक जुमला नही है। काले धंधे काले लोग जब तक एकल कानून की गिरफ्त में नही तब तक काले धन पर बहस नही होनी चाहिये। यह तभी सम्भव है जब दोह्ररे कानून को आरक्षण मुक्त किया जाये। ऐसे हालात में मोदी ही नही कोई भी लाल देशसमाज का भला नही कर सकता। जब तक जातिपाति मे बंटा इन्सान और धर्म के नाम पर बंटी इन्सानियत को लोग नही समझेगे।
जो लोग मेक इन इण्डिया की बात कर रहे है बो एक वार विदेश यात्रा से पहले ग्रामीण भारत का दौरा करे। वहां देखे कि कैसे बचपन कुपोषित है अशिक्षित है ,जबानी को देखें कि कैसे मजबूर है पलायन करने के लिये दो वक्त की रोटी मे घर परिवार का विखण्डन हो रहा है, भारत के हर गांव में देखे कि कैसे बुढ़ापे के कन्धों पर क्रषि का भार उन्हे शोषित कर रहा है।आज के नेता विदेशों को अपनी ससुराल समझते हैं। विदेश घूमकर आने पर भारत की गरीब न समझ जनता से कहते हैं कि हम विदेंशों में देखकर आये हैं और अपने यहां भी बरे बनैयैं। जबकि दुनिया का सबसे बड़ा अर्थशास्त्री भारत मे, सबसे बड़ा राजीतिज्ञ भारत में, सबसे बड़ा योद्धा भारत में पैदा हुये हैं तो विदेशों में क्या खाक सीखने जाते हैं? ऐसे मामलों में हम भरोशा नही करते आपके विकास का।
क्योकि आरक्षित काबिज हो सकता है मगर काबिल नही।
पहले घर मे देखो
फिर बात करो पड़ोसी की।
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