सत्य से रूबरू होने का एक मार्ग पूरब बताया गया है। भारतीय साहित्य ग्रंथों में इस बात को स्पष्ट रूप से समझाने के कई प्रसंग मिलते हैं। आखिर तमाम धर्मों की जननी भारत माता में अनेकानेक मनीषी जो हुए हैं, जिनके ध्यान व तप का पुण्य सदियों से दुनिया को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। ऐसा ही एक आकर्षण ईसा की पहली शताब्दी में भी माना गया है। जब सत्य की पराकाष्ठा को प्राप्त करने के लिए स्वयं प्रभु ईसा ने भारत की यात्रा की थी।
आज के इस लेख में हम ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह की भारत यात्रा का उल्लेख कर रहे हैं। हालांकि ईसा की इस यात्रा को इसाई जगत पूरी तरह से स्वीकार नहीं करता है, मगर उनके जीवन के वह दो दशक जब ईसा अदृश्य माने जाते रहे तब भारत से उनके संबंधों को नकारा जाना तर्कसंगत नहीं होगा। बहरहाल, ईसा मसीह का जन्म पहली सदी में 25 दिसम्बर को माना जाता है। उनके जन्म के बारे में कहा जाता है कि एक स्वर्गदूत के पवित्र आत्मा को जन्म देने संबंधी संदेश के बाद मरियम अथवा मेरी नाम की अविवाहित लड़की के गर्भ से ईसा का जन्म हुआ था। उनके जन्म संबंधी बहुत सी बातों का वर्णन बाइबिल में हुआ है। मगर बाइबिल ईसा मसीह के 13 से 30 वर्ष तक के जीवन पर मौन है। आखिर ऐसा क्यों? इस प्रश्न का जवाब तलाशने के बाद कई विद्वान जिस नतीजे पर पहुंचे वह ईसा की भारत यात्रा से जुड़ा बताया जाता है।
बीबीसी ने बहुत साल पहले ‘जीसस वज ए बुद्धिस्ट मोंक’ नाम से एक डाॅक्यूमेंट्री बनाई थी। जिसमें जीसस को सूली पर चढ़ाने की बात खारिज करते हुए कहा था कि जीसस जब 30 बरस के थे तो वापस अपनी पसंदीदा जगह चले गए थे। डॉक्युमेंट्री के मुताबिक, तब उनकी मौत नहीं हुई थी और वे यहूदियों के साथ अफगानिस्तान चले गए थे।
जीसस के शुरुआती जीवन के बारे में लिखने वाले जर्मन विद्वान होल्गर केर्सटन ने दावा किया था कि जीसस सिंध प्रांत में आर्यों के साथ जाकर बस गए थे। भारतीय दार्शनिक ओशो, रूसी विद्वान निकोलस नोकोविच व अमेरिकी उपदेशक लेवी एच डोलिंग जैसे विद्वानों ने जीसस और उनके भारत संबंधों पर विस्तृत चर्चा की है। यहां यह बताना जरूरी है कि यीशु के 18 वर्षों की जानकारी ‘न्यू टेस्टामेंट’ में नहीं मिलती है। उन गुमनाम वर्षों को लॉस्ट ईयर्स या साइलेंट ईयर्स भी कहा जाता है.
1887 में रूसी विद्वान निकोलस नोकोविच ने ईसा मसीह के बारे में एक अलग सिद्धान्त प्रस्तु किया था। ऐसा कहा जाता है कि नोकोविच ने यह सिद्धांत लद्दाख में हेमिस मॉनेस्ट्री में रखे डॉक्युमेंट ‘लाइफ ऑफ सेंट ईसा, बेस्ट ऑफ द सन्स ऑफ मेन’ का अध्ययन करने के बाद दिया था। जो 1894 में फ्रेंच लैंग्वेज में प्रकाशित हुआ। लेह की एक मॉनेस्ट्री में समय बिताने के दौरान वहां के लामा ने उन्हें ईसा के बारे में बताया था।
नोकोविच की थ्योरी के अनुसार ईसा को महान देवदूत व सभी दलाई लामाओं में श्रेष्ठ बताया गया है। इजरायल के एक गरीब परिवार में पैदा हुए ईसा ने 13 से 29 वर्ष की उम्र तक मठ में ज्ञान प्राप्त किया और फिर जेरूसलम पहुंचकर इजरायल के मसीहा बन गए। लामा का दावा था कि ईसा मसीह ने भारत आकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी और देश के कई शहरों में दीक्षा दी भी। बाद में ब्राह्मणों के विरोध के बाद वो हिमालय की ओर निकल गए।
अमेरिका में एक धार्मिक उपदेशक लेवी एच डोलिंग की अपनी पुस्तक एक्वेरियन गॉस्पेल ऑफ जीसस द क्राइस्ट’ में दावा किया कि जीसस की जिंदगी के लॉस्ट ईयर्स और अन्य तमाम जानकारियां उन्हें सुपरनैचुरल पावर से मिली थीं। इसमें उन्होंने लिखा है कि युवा जीसस ने भारत, तिब्बत, ग्रीस, ईरान और मिस्त्र का भ्रमण किया था।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय लोगों ने इस बात की पुष्टि की कि जीसस ने कश्मीर घाटी में कई वर्ष बिताए। 80 बरस की उम्र तक वे यहीं रहे थे। इस हिसाब से अगर जीसस ने किशोरावस्था के 16 वर्ष और जिंदगी के आखिरी 45 साल यहीं व्यतीत किए तो भारत, तिब्बत और आस-पास के इलाकों में वो करीब 61 साल रहे होंगे।
भारतीय दार्शनिक ओशो ने ईसा मसील के भारत से संबंध पर बड़ी गहरी बात कही। उन्होंने पूरब को सत्य का मार्ग बतलाते हुए ईसा द्वारा उसी मार्ग को अपनाने की बात कही। ओशो ने कहा कि “जब भी कोई सत्य के लिए प्यासा होता है, वह अनायास ही भारत की तरफ देखकर पूरब की यात्रा पर निकल पड़ता है। यह केवल आज की ही बात नहीं है। ढाई हजार वर्ष पूर्व पाइथागोरस भी सत्य की खोज में भारत आया था. ईसा मसीह भी।
ईसा मसीह के 13 से 30 वर्ष की उम्र के जीवन का बाइबिल में उल्लेख नहीं मिलता, जबकि 33 वर्ष की उम्र में उन्हें सूली पर चढ़ाए जाने की बात कही गई है. ओशो ने कहा कि जानबूझकर 17 सालों का हिसाब बाइबिल से गायब कर दिया गया. ईसा जब भारत आए थे, तब बुद्ध तो चले गए थे पर बौद्ध धर्म बहुत जीवंत था। वो कहते हैं कि जीसस की मृत्यु भी भारत में ही हुई।
वहीं ‘फिफ्थ गॉस्पेल’ नामक किताब में भी ईसा मसीह के भारत भ्रमण का दावा किया गया है।
ईसा की भारत यात्रा के संबध्ं में इसाई जगत किसी ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध न होने की बात को स्वीकार करता है। मगर विभिन्न लेखकों व दार्शनिकों ने साइलेंट ईयर्स में ईसा को जिस तरह से प्रस्तुत किया है, उस रूप में उनकी भारत यात्रा के कनेक्शन को सीधे तौर पर नकारा जाना भी तर्कसंगत नहीं है।
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