जटा में उँगलियाँ फेरते नटराज के,
सावन की रातों में ध्यान लगाते नीलकंठ के।
गंगा की लहरें बाहर आती हैं त्रिशूल उठाते,
अग्नि के रुख में बैठे तपस्वी जटाधारी के।
बोलो शंकर भोलेनाथ, हम सबकी रक्षा करो,
भक्तों के दुख हरो, अपनी कृपा हम पर बरसाओ।
महाकाल त्रिशूलधारी, मृत्युंजय महादेव हैं,
ब्रह्मा विष्णु से ऊपर हमेशा सुरक्षा देते आप हैं।
जो लगाते हैं भक्ति का संज्ञान उन्हें पाप से छुटकारा मिलता है,
जीवन के सभी दुख और दर्द से शिव भक्तों को आराम मिलता है।
जग में लोगों का हो रहा है शंकर का ध्यान,
हो रहा है सबका उद्धार शिव के प्रभाव से महान।
जटा में उँगलियाँ फेरते नटराज के,
सावन की रातों में ध्यान लगाते नीलकंठ के।
गंगा की लहरें बाहर आती हैं त्रिशूल उठाते,
अग्नि के रुख में बैठे तपस्वी जटाधारी के।
जय शिव शंकर!
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