जापान में जब एक पेड़ उगा, तब भारत के पश्चिमी तट पर वास्कोडिगामा अपने शिप से उतर रहा था।
इस पेड़ ने साम्राज्यवाद देखा, क्रांतियां देखी, राजाओं को मिटते देखा, जनतंत्र का उभार देखा। देशों को बनते देखा, खत्म होते भी देखा।
कला देखी, तो क्रूरता का भी गवाह हुआ, विज्ञान को अंधकार से चांद की सतह तक पहुँचते देखा।
400 साल में यह बोनसाई, महज चार इंच बढ़ा। ये हरा भरा है, एकदम असल है। फूल भी आते हैं, सुंदर है, 50 हजार डॉलर का सबसे महंगा पौधा है। पर सच यही है, कि ये बोनसाई है,
याने बौना है, किसी के रहमोकरम पर है।
बोनसाई, नॉर्मल नही होता। इसे मिट्टी की थिन लेयर दी जाती है, कंट्रोल्ड पानी दिया जाता है। तारो के छल्ले से इसका विकास रोका जाता है।
अनचाही शाखें काट दी जाती हैं।
बोनसाई किसी भी पौधे को बनाया जा सकता है, बशर्ते आप उसकी नैचुरल ग्रोथ का पूरा पैटर्न समझ चुके हों। इसी तरह बोनसाई किसी समाज को, किसी व्यवस्था को, किसी देश को, उसके लोगो को भी बनाया जा सकता है।
आपको बस, शिक्षा की सीमित मिट्टी देनी है, सीमित बौद्धिक स्वतंत्रता देनी है। उनकी जुबान कतरनी है, उन्हें धर्म- जाति -राष्ट्रीयता -भाषा के कठोर छल्लों में जकड़ देना है। उसे मरने नही देना है।
उसे जीने नही देना है।
बोनसाई रईसों का शौक है। खूबसूरत बोनसाई उनके ड्राइंग रूम की शोभा बनता है। ठीक जैसे हमारा लोकतंत्र किसी के ड्राइंग रूम में सजा हुआ है। तो हमारा यह बोनसाई भी जापान के एक रईस के कलेक्शन में सजाया गया था।
साइतामा प्रिफेक्चर से यह पौधा 2019 में चोरी हो गया। इसके मालिक ने रो रोकर चोर से सार्वजनिक अनुरोध किया, कि पानी समय पर जरूर दे।
वरना 400 साल का यह पेड़, सात दिन भी टिक न सकेगा।
बहरहाल हम शुक्रिया अदा करें, अपने बोनसाई लोकतंत्र के चोरों को। इसे जहां कहीं भी छुपाकर रखा है, सीमित खाद पानी देते हैं। उसे, कम से कम मरने नही दे रहे।
क्या हुआ जो इसे जीने भी नही दे रहे।
हम खुद बोनसाई नागरिक है, उन्हीं के मोहताज हैं। जात धर्म से कटी जुबान , आखिर शिकवा भी कैसे करें?