
"शब्द ही व्यक्तित्व को बिखेर सकते हैं, शब्द ही व्यक्तित्व को निखार सकते हैं,शब्द ही एक साधारण को चर्चा में ला सकते हैं और शब्द ही चर्चा का विषय बन सकते हैं।"
ढ़ाई अक्षर का ये शब्द अपने अंदर कई सच्चाइयां, भावनाएं समेटे है और कई शब्दों का भार लिए हुए है और हम ढ़ाई सेकेंड से भी कम वक्त लगाते मुंह से कोई भी शब्द निकलने में,कभी-कभी किसी के शब्द उसके व्यक्तित्व की तस्वीर ज़हन में छोड़ जाते हैं और शब्द ही तय करते हैं कि उस तस्वीर को किस भावना से याद किया जाए और शब्दों के माध्यम से ही उस भावना को व्यक्त किया जा सकता है।शब्दों का जादू ऐसा ही की उसके माध्यम ही किसी को पल में अपना और किसी अपने से ही दूरियां हो जाती हैं।
ऐसा कहा जाता है कि आपकी जुबां से निकला हर एक शब्द पूरे ब्रह्मांड में भ्रमण करता है और आपकी ही जुबां से निकला हर एक शब्द एक न एक दिन आप ही को आकर लगता है, अर्थात यदि आप किसी के लिए अच्छा बोलते हैं तो बदले में कभी न कभी वो अच्छे शब्द आपको भी बोले जाएंगे और यदि आप किसी को बुरा भला कहते हैं तो बाद में कभी न कभी वो शब्द आपको जरूर छुएंगे। अतः प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह शब्दों का चुनाव हमेशा ही अच्छा करे, क्रोध में भी भावनाओ को नियंत्रित करते हुए अच्छे ही शब्दों को बोले या खुद को शांत कर ले और कुछ न बोले।
यदि व्यक्ति को शब्द ज्ञान हो जाए तो वह ज्ञान उसको उसे किसी भी कठिन परिस्थितियों से निकलने में सहायक सिद्ध होता है अर्थात यदि जुबां से कुछ अधिक निकल भी जाए तो बात को संभालने में या आम भाषा में कहें तो गलत बात को छिपाने में लीपापोती में सहायक हो जाता है, हां थोड़ा अजीब है सुनने में परंतु वास्तविक जीवन में ऐसी परिस्थितियां भी आ जाती हैं, आशा करती हूं आप मेरी इस बात को आपके वास्तविक जीवन से जोड़ पा रहे होंगे।
शब्द की भी अपनी जुबां होती है कुछ शब्द केवल बच्चों के मुख से सुनने में अच्छे लगते हैं क्योंकि यदि वह शब्द किसी बड़े के मुंह से सुनते ही तो छूटते ही कहते है कि वह कितनी बचकानी बाते करता है और छोटे मुंह से बड़े शब्द अक्सर लोगो को बड़बोलापन लगता है। इस बात पर कबीर जी का एक दोहा याद आता है,
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे अपहुँ शीतल होए"।।
मेरी कलम से।
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