मैं शहर में एक फैक्ट्री में काम करता था और थोड़ी दूर गाँव मे मेरा घर था,
एक रात मुझे शहर से देर हो गयी थीं अगले दिन इतवार था छुटी थी,तो मैंने सोचा कि चलो थोड़ी देर ही सही घर पहुच कर आराम से खाना खा के सो जाऊंगा आते समय अपने लड़के के लिए मैंने बैट बॉल ले लिया उसको क्रिकेट का बहुत शौक हैं, गाव के बच्चो के साथ रोज़ शाम को खेलता है बैट बॉल देख कर खुश हो जाएगा। बस घर का ख्याल लिए हुए मैं आ रहा था मेरे गाँव का मोड़ आ गया अचानक मेरी साईकल मोड़ पर गिर गईं बारिश का मौसम था तो थोड़ा मिचड़ था
मैं उठा अपने कपड़े झाड़े और साईकल उठा कर चल पड़ा अभी दो पैडल ही मैरे होंगे कि कहा से एक आदमी आ गया तभी बादल ने भी गर्जना भारी वो आदमी मुझसे बोलने लगा कि अभी आगे मत जाओ कोई फायदा नही है हरिया मैं हैरान के ये मुझे जनता कैसे है। में बोल कौन हो भाई तुम मुझे कैसे जानते हो इस गांव के तो नही लगते। औऱ मुझर रोक क्यों रहे हो भई
वो आदमी मुझसे बोलता है कि में तुम्हे जनता हु हरिया तुम भी मुझे जानते हो पर पहचानते नही हो
मेने अपने हाथ की टॉर्च से उसको देखा तो एक पल के लिए लगा कि में उसको जनता हूँ,पर फिर भी मैने बोला इसका क्या मतलब हुए के मैं जानता हूँ पहचानता नही??
वो हस्ता हुआ बोलता हैं क्यों पहचान नही पाए।
मैंने फिर टॉर्च की रोशनी में देखा तो लगा कि मेरे चाचा का लड़का है जो दुबई
गया था तीन साल पहले काफी दिनों बर्फ मिले है तो शायद पहचान नही पा रहे
मैंने बोला बबलू भैया
वो खाली हस्सा मुझे लगा कि वोही होंगे
हम और वो साथ साथ चलने लगे गाव की ओर आसमान में बादल गरज रहे थे लग रहा था कि बारिश ज़ोर से आने वाली है
मैने बोला :- भाई आप मुझे क्यों मन कर रहे थे जाने के लिए बल्कि आप भी चलिए खाना खाएं आराम करे आप दुबई से कब आये
वो बोले:- मुस्कुराते हुए मेरा आना जान लगा रहता है रही तुम्हारी बात तुमको भी ले जाने आया हूं
मैंने बोलै न बाबा न मैं यही ठीक हु अपने बीवी बच्चो को छोड़ कर कहा जआऊंगा ये देखिये मैं बेटे के लिये बैठ बॉल ले जा रहा हूँ
वो आदमी बोला:- अच्छा कहा है
मैंने बोला ये देखिये उसको अपने हाथ में पकड़ा बैट बॉल दिखया पर ये क्या वो मेरे हाथ मे तो था ही नही यंहा तक कि साईकल भी नही थी मेरे पास बिना साईकल के और बैट बॉल के आ गया चार कदम आगे आ गया था। बताओ उन पर ध्यान की वजह से पीछे छोड़ दिया सब हालाकि ऐसा हुआ नही कभी खैर
मैं बोलते हुए अरे बबलू भैया देखो अपमी वजहसे से सब छूट जाता बूढा हो रहा हूँ लगता है हा हा हा हा
जैसे में पीछे पलटा देखा वँहा घेरा बना कर कुछ लोग खड़े थे मेने सोचा कि कंही ये मेरी साईकल ले कर न चले जाएं
मैं रफ्तार से उनके घेरे अंदर गया और देखा कि….वँहा पर तो मै पड़ा था की साईकल के साथ मेरे सर से खून बह रहा था और बगल के एक बड़ा सा पथर भी था में सी चिलया ये तो मै हु ये तो मैं हु मूझे चक्कर आने लगा में उस घेरे से बाहर आया वो ही आदमी मसकुरा रहा था, वो बोला वो लोग तुम्हे अब नहि सुनेगे
मैंने बोला क्यों झूठ बोल रहे ही बबलू भैया फिर तुम मुझे कैसे सुन रहे हों देख रहे हो बताओ न इनलोगो को क्या हो रहा है ये।
मैने बोला था न तुमसे तुम मुझे जानते हो पहचनते नही में बबलू नहि में माध्यम हु इस धरती से सत्यलोक का एक माध्यम
मुझे उसकी बात पर याकि नही था
मैने बोला तुम झूठ बोल रहे हो ऐसा हो ही नही सकता
वो आदमी बोलता है- मेरा हाथ पकड़ो
मैंने उसका हाथ पकड़ा न जाने कैसा असहास हुआ पर मैं उसके बाद फुट फूट के रोने लगा
मैंने बोला क्यों ऐसा क्यों मेरी क्या गलती मेने किसी का बुरा नही किया मेरी बीवी है बच्चा है छोटा कोई बुरी आदत नही है। फिर मैं क्यों बस साईकल फिसल गई और पथर से सर टकरा गया बस…खत्म कहानी मेरी कितने लोग ऐसे गिरते है में ही क्यों मैं बच्चे के लिए बैट बॉल ले जा रहा था। है भगवान….
वो आदमी बोला: - हरिया जो तुम जी रहे थे जो भोग रहे थे वो मिथिया था मोह कभी खत्म नही होता क्यों कि वो मिथिया है जो सच है वो शास्वत है सदा रहता है सत्य का न कोई आरम्भ है ना कोई अंत इस भ्रमलोक मे मनुष्य को धूप हो तो बदल चाहिए, बारिश हो तो सूखा चाहिए मनुष्य खुद ही अपने आप मे एक रहस्य है उसको संतुश्टि कभी नहि मिलती ,जो तुम्हारा है वो खाली सत्य है, मेरा हाथ थामो में तुम्हे भ्रमलोक से सत्यलोक की ओर ले जाऊ
मैंने उनसे पूछा :- मेरे बाद मेरे परिवार का क्या होगा इनकी क्या ग़लती
उन्होंने बोला:- विधाता न्यायदाता है वो सदा न्याय करता है भरोसा रखो ।
और मैंने उनका हाथ थाम लिया भ्रमलोक से विलीन होने के लिये।