पैरों मैं जंजीर है, लबों पर खामोशी है
आखों में सूनापन, चेहरे पर उदासी
सलकल्प ध्रीद है, विश्वास अटूट है
भय से डगमगा रहा है मन,
वो औरत है,
वो औरत है जिसने पहली बार घर से बिकाले है कदम।
अपनों की नजरों ने रोका कई बार,
बचपन से सीखा था उसने,
परिवार और रसोई घर ही है तेरा संसार।
अश्रु बहे तो बहने दो,पर आखें मत उठाना
मर जाना मिट जाना पर नाम न डुबाना।
तुम इज्जत हो घर की, पर तुम्हारी कदर नही,
जो भी समाज कहें वो करो,
दिल की सुनना लड़कियों के लिए सही नहीं।
ताने और कष्ट सहे है जिसने हरदम,
वो औरत है,
वो औरत है जिसने पहली बार घर से निकाले है कदम।
बराबर हो, तुम समान हो पुरुष के,
यह बोल बाला है
पर जिसने भी यह साबित कर दिखाया है,
अपने दम पर, लड़कर, झगड़कर,
उसका चरित्र काला है।
रिश्तों की बंदिशे है, अधूरी ख्वाहिशें है
हारती कोशिशें, टूटती उम्मीदें
पर फिर भी उसने पहला कदम उठाया है
एक मां, एक बहू , एक बेटी
उसने सब का फर्ज निभाया है,
अपना वजूद और खुदको खोकर
उसने नए रिश्तों को पाया है।
शादी से पहले किसीको बेटी थी
शादी के बाद किसीकी बहू है
मां के सफर पर भी वो चली ,
पर इन सब में वो, वो कहा रही ?
आज उसने एक नई राह को चुना है,
समाज की नही उसने आज, दिल का कहना सुना है
जिन रिश्तों की उम्मीद थी, वो बेगाने लगते है,
औरत बराबर है, यह सब बस हसीन फसाने लगते है।
लिहाज की चादर ओढ़ उसने कदम उठाया है
आगे बढ़ना है तो है, उसने लक्ष्य बनाया है
पैरों मैं अब भी जंजीर है, पर लबों पर मुस्कान,
रुकना नहीं जंजीर को तोड़ दिखाना, अब यही उसका ध्यान है,
सलकल्प ध्रीद है, विश्वास अटूट है
भय से डगमगा रहा है मन,
वो औरत है,
वो औरत है जिसने पहली बार घर से निकले है कदम।
- Preeti Sharma