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シェア - जगत का जंजाल-संसृति

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Shivraj Anand

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जगत का जंजाल-संसृति

(मनुष्यों को अपने हृदय की सु बुद्धि से दीपशिखा जलाने चाहिए।उन्हे इक दुसरे के मध्य भेदभाव डालकर मौजमस्ती नही करनी चाहिए।मौजमस्ती दो पल की भूल है उनके कुबुद्धि का फल शूल है) इस प्रकृति के 'विशद -अंक 'मे कलिकाल की          संसृति का "श्री गणेश" होता है जहां सुख आने पर          आनंद  सुखित हो जाती है वही दुख आने पर     सुप्त- व्यथा जागृत होती है उसी प्रकृति के विशद अंक मे एक छोटा-सा  गांव है -दामन पुर ।जो चारो ओर नदी यों से घिरा हुआ है।कहीं - कहीं खुले मैदान हैं तो किसानों की चांद तोडने जैसी काम भी

जगत का जंजाल-संसृति
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