मेहरबान
मेहरबान
ईश का दूजा रूप बने है ,होता जो सब पे मेहरबान।
जाने कितने लोग बसे है,पर कम दिखते है इंसान ।।
शोलों पर जलती है खुशियाँ ,निकले रिश्तों से है आग ।
है मशीन के जैसे चलती ,धन दौलत की भागम भाग ।।
है मोहब्बत दौलत बनती ,दिल की प्रीत से सब अंजान।।
ईश का दूजा रूप बने है ,होता जो सब पे मेहरबान।
कदम कदम पर ठोकर खायी ,अब तो पकडो़ मेरा हाथ।
राह नही दिखती है कोई ,दे दो बढ़ के तुम तो साथ।।
है प्रेम में बसती दुनिया ,वरना जग सारा वीरान ।
ईश का दूजा रूप बने है ,होता जो सब पे मेहरबान।।
सपनो की दुनिया है टूटी ,खोयी अपनी है उडान।
सोच रही गुडि़या शीशे की ,क्यो हो गयी जवान।।
छीन लिया खुशियों को मेरी,कितनी मै थी नादान।
ईश का दूजा रूप बने है ,होता जो सब पे मेहरबान।।।
सुमति श्रीवास्तव
जौनपुर ,उ