पाकेटमार अर्थव्यवस्था
आखिर हम भारतीय स्वतंत्र शिक्षित स्वस्थ्य होकर भी पाकिटमार जीवन जीने को क्यों मजबूर हैं या हमारी अर्थव्यवस्था का जीवन चिड़ीमार जैसा क्यों है जो हमारे समाज को पाकेटमार बना रही है। देश परिवार धर्म समाज यह विश्वास पर चलते हैं इनकी संरचना हमारे जीवन की उन सभी गतिविधियों में शामिल है जो समय के साथ घटित होती है और इनकी पोषणता में हम सदैव ही द्ृढता से खड़े रहते हैं लेकिन आज का मानव शोषणता के लिये चल पड़ा है जो पाकेटमार जैसा है। जिसका उद्देश्य सिर्फ उदर भराई है। शिक्षा उदर भरने के लिये देते और लेते है की