mintu
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जिंदगी कि तलाश में जिंदगी जीना ही छोड़ दिया हमने पाया तो बहुत कुछ पर पाते पाते ना जाने कितना कुछ खों दिया कभी बचपन में हम छोटी छोटी बातो पर ही खुश हो जाया करते थे आज बड़ी बड़ी बातो पर भी हसी नहीं आती है।बचपन में जब मा कहना बनाती थी तब मेरा ये खाने का में नहीं है हम ये नहीं खाते कहकर में का खाना बनवाते थे आज बस मा के हाथ का खाना मिल जाए उसमें ही खुशी मिल जाती है पहले पापा से जिद करते थे कि हमको ये चाहिए हमको ये चाहिए आज जेब जिम्मेदारी आती तो समझ में आया कि किस तरह वो हमारी ख्वाहिशों को पूरा करते थे तो आज ऐसा क्या हुआ जो लोग ये सब भूल जाते है और जिनसे हम ख्वाहिश करते थे कि ये दिलाओ ना उनको खाना खिलाने में भी सोचते है जिनके हाथों को पकड़ कर चलना सीखा अब उन्हीं को हम नजरो में गिराते है बड़ी ही अजीब है ये जिंदगी लोग कितनी आसानी से भूल जाते है कि जिनको तुम सताते है वो तुम्हारे बाप है और कल तुम भी किसी के बाप होगे बड़ी ही अजीब है दुनिया, ''खुद अपनी से दागा करते है और गैरो से वफ़ा कि उम्मीद करते है'' हम हमेशा पैसे के पीछे भागते रहते है पर क्या पैसे से ही जिंदगी कि खुशियां खरीदी जा सकती है