(अंद्विश्वास की कुरीतियों को दूर करने के लिए एक कथा भूत ...।)
आंधी व घटा तो आता ही रहती थी पर जिस दिन स्याम बाबू अपने बेटे को खेल सिखाने के लिए खेल के मैदान में ले जा रहे थे। उस दिन इतनी भयंकर आंधी आई की श्याम बाबू चल न सके, अचानक गिर पड़े । उन्हें देखकर कुछ ऐसा प्रतीत हो रहा था
निष्प्राण है पर उनकी सहसा आँखें खुली तो देखा एक बूढी औरत उनके करीब आ रही थी । पर श्याम बाबू भय रहित आँखों से पर्दा हटाया और लोहा लेने के लिए तैयार हो गए। उनके इस वीरता को देख वह बूढी औरत कफर हो चली ... आखिर श्याम बाबू को संदेह हो गया की बहुत ही है।
वे उतना भूत -प्रेतों से परिचित नहीं थे , बस इतना सुना था जरुर था कि एक व्यक्ति के मर जाने पर उसके बदन पर असुर वृत्तियों के सूचक और पंजे थे। आप-बीती से सहमें ... बस उसी को नज़र में बसाते ...। की ओ ......। खेल का मैदान ...... मेरा पुत्र .. और...वह बुढ़िया ...। वह कोई जादू तो नहीं ... वे मन को घोड़ें की तरह दौड़ने लगे ...। आखिर उनके साथ ऐसी पहली घटना थी । स्याम बाबू के निवास-स्थल में उसी रात कोई मुस्लमान अज़ीमउल्लाखां नाम का व्यक्ति आया था, वह बता तह था की जब मई दिन में चलता हूँ तो लगता है कि न जाने मैं कितने किलोमीटर सफर कर चुका हुं और जब घर जाता हुं तो लगता है काफ़ी थका सा हुं। मेरे हाथ-पाएं फुल जाते हैं। उसकी बातों को सुनकर श्याम बाबू को एक पल के लिए लगा की उसे कोई बीमारी तो नहीं ... पर वे बहुत की गाथा सुन चुके थे, फिर उन्हें भय हो गया की भूत ही है। एक रोज़ श्याम बाबू एक बैध को बुलाने के लिए जा रहे थे, की अचानक आवाज़ आई- कृपया सुनिए जनाब- वे आवाज़ को विस्मृत कर कदम बढ़ाते गए .. फिर इतनी ज्यादा अट्टास आने लगी, की वे कांतिहीन होकर विपरीत दिशा में चल पड़े। उनके साथ एक घटना और घंटी जब वे रात को शौचक्रिया के लिए जा रहा था। रात अँधेरी थी। चूड़ियों की खनक, पायल की झंकार बज रही थी। वे झटपट होते चले। उन्हें लगा की कोई माया तो नहीं ...। अब वे क्या करते ? जिंदगी सँवारने का अब दूसरा रास्ता भी तो न था .. बस एक बहुत को भागना था । आखिर
एक दिन श्याम बाबू जिंदगी और मौत के बीच खड़े होकर बहुत को भागने का फैसला लिए ...। वे सभी से बोले - अपने हिरदय से भय को निकल दो, अंततः एक दिन बहुत की कथा हो गयी लुप्त, सिर्फ नाम ही रह गया। आज उसी गाओं में लोग कलेजा ठंडा कर जीवन गुजर रहे हैं ।
एक दिन वे कहने लगे कि वे लोग आधी खोपड़ी के थे, जो न समझ पा रहे थे की भय से बहुत होता है। हाँ, मैं तो अल्पज्ञ हुं अपनी नज़र से तो कह सकता हूँ कि भय से ही भूत होता है किन्तु दुनिया नज़र से यह कैसे कह सकता हूं की वास्तव में बहुत होते हैं या अन्धविश्वास की कथा ? यह प्रश्न आप लोगों से करता हूँ।
Shivraj Anandさんをフォローして最新の投稿をチェックしよう!
0 件のコメント
この投稿にコメントしよう!
この投稿にはまだコメントがありません。
ぜひあなたの声を聞かせてください。