मानवता जब शर्मशार हुआ।
इंसानियत पर प्रहार हुआ। वेदना संवेदना को दरकिनार किया।
पैसों से खूब प्यार किया।
जब हृदय की तरुण पुकार भूल जाता है।
तब भ्रष्टाचार की लीला में डूब जाता है।
मानवता जब कुंठलाती है।
गरीबी लाचारी की दास्तान सुनाती है।
शोषण के विरुद्ध बाहर से शांत,पर हृदय की तरुण पुकार से बहुत कुछ कह जाती है।
गद्दी पर बैठकर जब उसे वेदना का एहसास नहीं होता है, तब भ्रष्टाचार की लीला में डूब जाता है।
काम कराने के लिए जब रिश्वत मांगी जाती है रिश्वत पैसे के साथ साथ लाचारी भी लाती है। मौके का फायदा खूब उठाया जाता है।भ्रष्टाचारी कायदे से बाहर निकल जाता है। जब इंसानियत की आंखें भूल जाता है
तब भ्रष्टाचार की लीला में डूब जाता है।
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