ग़ज़ल


ゲスト2022/11/11 17:32
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ग़ज़ल

मैं भी कर सकता हूँ पूरी बारिशों की कमी

छोड़कर तेरे होठों पे अपने होठों की नमी


कोई चखे या ना चखे, मुझे तो चखने दे

लगती है तू पानी की कोई बूँद शबनमी


तेरे बदन के हर एक कोने पर छोड़ जाऊंगा

निशानियां वो कि जो मेरे चूमने से बनी


टूट जाऊँ, बिखर जाऊँ या माटी में मिल जाऊँ

पिघलेगी नहीं वो बर्फ जो तेरी यादों में जमी


तेरे जाने के बाद हाल कुछ ऐसा है "कुमार" का

महसूस हो रही है जिंदगी में ज़िंदगी की कमी


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